सब झगड़ों का मूल है, अपने मन की सोच.
सोच बदलकर देख लो, मिट जायेगा रोष.
ग़लती हो ग़र मुझसे तो, हर दंड स्वीकार है,
पर आपका चुप रह जाना, ये तो अत्याचार है.
अपेक्षा और उपेक्षा ....
झगड़ों के प्रमुख कारण हैं.
दूसरों से आदर्श होने की अपेक्षा,
और दूसरों के मनोभावनाओं की उपेक्षा.
लोभ, निराशा, क्लेश, द्वेश,
आलस्य तुझी पर निर्भर है.
क्यों औरों पर क्रोध करे है,
दुश्मन अपने भीतर है.
लोभ, निराशा, क्लेश, द्वेश,
आलस्य तुझी पर निर्भर है.
क्यों औरों पर क्रोध करे है,
दुश्मन अपने भीतर है.
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