कौन हो तुम,
कौन हो तुम रात की जो
नींद को हमसे चुराकर
याद का आकार लेकर
तब हमारे पास आकर
कल्पना की सतह पर तब
भाव को आकार देती
भाव निर्मित चित्र में
बहु रंग की बरसात करती
स्नेह सागर की लहर में
ज्वार का वरदान बनोगी?
प्रेम की ताकत मुझे दे
क्या मेरी पहचान बनोगी?
कौन हो तुम,
कौन हो तुम हृदय की जो
अनकही कहने लगी हो
स्वप्न में आती नहीं तुम
स्वप्न में रहने लगी हो
विरह की यह वेदना जब
हृदय तल को बेध जाती
याद की खिड़की खुली
औ तुम खड़ी हो मुस्कुराती
इस अधूरी कविता का क्या
तुम ही पूर्णविराम बनोगी?
अपने दिल की बात छुपाकर
क्या अब भी अनजान बनोगी?
3 comments:
offo sir! touch ho gayee ye to dil mein!! too good...
cute one! very lovey-dovey type! :)
Thanks Rahul, Priya.
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