Wednesday, August 18, 2010

राखी का सूत












राखी का सूत हूँ मैं
मृतप्राय मानवता का
विशालकाय दानवता का
पतितता के विजय का
पावनता के पराजय का
वस्तुत्व के उद्भव का
व्यक्तित्व के पराभव का
पूजनीया के पतन का
शक्तिस्वरूपा के दमन का
जीवित सबूत हूँ मैं
राखी का सूत हूँ मैं II


संस्कृति के विस्मरण का
सहृदयता के छरण का
भौतिकता के विकास का
प्राचीनता के परिहास का
संबंधों के समापन का
मिथ्यावादी अपनापन का
भोग के उर्वरण का
त्याग के मरण का
बिलखता सबूत हूँ मैं
राखी का सूत हूँ मैं II

Sunday, August 15, 2010

तब से ......... अब तक.

तब मिलने की व्याकुलता थी
अब बिछुड़न की यह ज्वाला है
तब जीवन रंग गुलाबी था
अब तो वह दिखता काला है
तब मन लगता था प्रियतम में
अब तो दिखती मधुशाला है
इस क्रूर काल के कटु कदमों के
नीचे दबता जाता हूँ
तब से अब तक के जीवन के
स्मृति चित्रों को दुहराता हूँ ll

सरि तट की रेती पर हमने
जीवन के चित्र बनाये थे
उन चित्रों के सच होने की
तब मन में आस लगाये थे
अब वर्तमान में चित्र वही
जलधारा के आहार बने
अपने विचार वह स्वप्न वही
पीड़ादायी तलवार बने ll

तब जीवन पीयूष कलश सदृश
अब यह लगता विष प्याला है
मेरे मधुवन की क्यारी में
किसने विषधर को डाला है ?
निश्चय ही समय तुम्हारी ही यह
कष्ट दायिनी क्रीडा है
तब से अब तक की स्मृतियों से
अंतर में उठती पीड़ा है ll

असंभव का विशेषज्ञ - Specialist of Impossible

चिर समय से जो अंधेरा
इस जगत से जा न पाया
कोटि सूर्यों के किरण को
जिस तमस ने है हराया,

बुद्धि बल से युक्त मानव
के गमन को रोकता जो
स्वप्न पंछी की उड़ानें
भुवन में अवरोधता जो,

आदि युग से प्राणियों को
जिस विषय का ज्ञान न था
हर सपने को सच करने की
सक्षमता का भान न था,

हर पराजय की वजह के
ग्रंथ का सर्वज्ञ हूँ मैं
असंभव का विशेषज्ञ हूँ मैं,
असंभव का विशेषज्ञ हूँ मैं,

भाग्य रेखा भाग्य को
अबतक दिशाएं दे रही थी
भाग्य रेखा को दिशाएं
दे सके वह शक्ति मैं हूँ,

स्वप्न जो देखा कभी पर
प्राप्ति का साहस नहीं था
कल्पना वो सत्य करने
का अटल संकल्प मैं हूँ,

राह जो अबतक नहीं था
स्वप्न सच को जोड़ता जो
मार्ग वह निर्माण करने
का अनत उत्साह मैं हूँ,

प्राणीमात्र की सीमाओं का
विस्तार कारी यज्ञ हूँ मैं
असंभव का विशेषज्ञ हूँ मैं,
असंभव का विशेषज्ञ हूँ मैं,