Sunday, August 15, 2010

तब से ......... अब तक.

तब मिलने की व्याकुलता थी
अब बिछुड़न की यह ज्वाला है
तब जीवन रंग गुलाबी था
अब तो वह दिखता काला है
तब मन लगता था प्रियतम में
अब तो दिखती मधुशाला है
इस क्रूर काल के कटु कदमों के
नीचे दबता जाता हूँ
तब से अब तक के जीवन के
स्मृति चित्रों को दुहराता हूँ ll

सरि तट की रेती पर हमने
जीवन के चित्र बनाये थे
उन चित्रों के सच होने की
तब मन में आस लगाये थे
अब वर्तमान में चित्र वही
जलधारा के आहार बने
अपने विचार वह स्वप्न वही
पीड़ादायी तलवार बने ll

तब जीवन पीयूष कलश सदृश
अब यह लगता विष प्याला है
मेरे मधुवन की क्यारी में
किसने विषधर को डाला है ?
निश्चय ही समय तुम्हारी ही यह
कष्ट दायिनी क्रीडा है
तब से अब तक की स्मृतियों से
अंतर में उठती पीड़ा है ll

1 comment:

Anonymous said...

aacha hai.