सोचकर देखिये, सोच और भूख मैं क्या कोई संबंध है? मुझे लगता है, है, एक अप्रत्यक्ष किन्तु गहरा संबंध है. मैंने इसका अनुभव किया है, और प्रयत्न करके अपने विचार व्यक्त करने का आपसे अनुरोध करता हूँ.
मेरा मस्तिष्क अधिक तीव्र और कुशाग्र होता है जब मैं भूखा होता हूँ. विचारों का प्रवाह तीव्र और स्वचालित हो जाता है. नवप्रवर्तनशील (innovative) और गहरे विचार जन्म लेने लगते हैं. क्या कारण हो सकता है?
भूख संसार की सबसे प्राचीन (old), आवर्ती (periodic) और बुनियादी (basic) समस्या है. मनुष्य और किसी भी समस्या को हल करना टाल या छोड़ सकता है सिवाय भूख के. जब हम भूखे होते हैं समस्त संवेदनाएं और मस्तिष्क जाग्रत हो जाते हैं, जो की और समय में अप्रयुक्त (unused) व सुषुप्तावस्था (sleep mode) में होती हैं. इस जागरण की बेला में यदि कोई नए विचार की चिंगारी प्रगट हो और उसका निर्वाहन (persevere) किया जाये तो हम कुछ नया प्रगट कर सकते हैं. नया स्वयं के लिए या पूरे संसार के लिए, यह आपकी सोच के इतिहास पर निर्भर करता है. शायद यही कारण था कि ऋषि-मुनि भूखे रहकर लम्बे समय तक तप किया करते थे.
निष्कर्ष: भूख के कारण जाग्रत संवेदनाओं और चेतना का उपयोग यदि विचार के लिए किया जाये (जितनी देर संभव हो) तो उत्कृष्ट दर्शन (philosophy) या साहित्य (literature) का जन्म हो सकता है.
मैंने यह भी अनुभव किया है कि मन, भूख के समय में अलग और पेट भर जाने के बाद अलग तरह से सोचता है. भोजन आलस्य प्रदान करता है, शरीर को ही नहीं, मस्तिष्क और संवेदनाओं को भी. आप एक प्रयोग करें. एक कविता या blog लिखना शुरू करिये जब आपको भूख लगी हो. कुछ देर बाद जब विचार आने लगें और कविता बनने लगे, तो उसे वहीं छोड़कर पेट भर स्वादिष्ट खाना खा लीजिये. अब फिर से कविता पूरी करने का प्रयत्न कीजिए. क्या कोई अंतर प्रतीत होता है? कृपया अपना अनुभव हम सब से अवश्य व्यक्त करिये.
Hunger Therapy: I have an idea, all the people who are feeling lazy or dull or out-of-mood should try "Hunger Therapy". Suppose you are feeling dull this evening. Start fasting, don't eat anything until the hunger becomes uncontrollable. I believe the hunger will awaken your senses and remove dullness.
आप विचार करें, मैं अब भोजन करूंगा.
7 comments:
Definitely a new original thought.When i am hungry I do think, but only about food. My thoughts dwell on what to cook or what to eat.Till date I havent been peotic or philosophical when hungry.
Try solving some problem when you are hungry. A problem which you were not able to solve earlier.
It is also possible that this phenominan is unique to me. I don't know. That's why I posted this blog, to know what others think about it.
sir!! too good... guess what, last night i didn't eat to keep my brains working!!! ;) ...
Rahul, Did it work? I mean, did you feel any difference?
yes i did! just had some liquid to keep me alive while sleeping.. put on some instrumentals and slept! had a good sleep ;) .. probably it needs a little more research.. on the metabolical cycle of a body which is unique for everyone.. ultimately energy released by the exothermic chemical reactions happening in stomach gets converted to thoughts.. also hypothalamus/hippocampus of brain plays a major role in digestion! :P.. so there is really something interesting.. 'hunger therapy' can really work.. :)..
Rahul, perhaps this is why अल्पहारी was one of the qualities of a student in the ancient Indian literatures:
काक च्येष्टा बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च
अल्पहारी गृह त्यागी विद्यार्थी पंचलच्छणम्
very true! sad part is it's all lost today! :(
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